Tuesday, January 03, 2006

चींचीं चुहिया

(कविता के बारे में: ये कविता मेरे द्वारा लिखी गई प्रथम कविता है। इसे मैंने तीसरी कक्षा में लिखा था इसलिए इसमें मेरा बचपना साफ झलकता है।)

दुनिया तो बस गोल है,
उसमें एक ही होल है।
उसमें रहती चींचीं रानी,
चुगती थी दाना और पानी।
एक बार आया मोटा साँप,
चींचीं भागी दिन और रात।
रास्ते में मिला कालू भालू,
स्वभाव से था बिल्कुल चालू।
चींचीं सब कुछ समझ गई,
ले गई उसे साँप के पास।
साँप सोचा डसूँ इसे,
भालू सोचा खाऊँ इसे।
दोनों मर गए इस चक्कर में,
चींचीं रह गई उस जंगल में।

-अम्बुज सक्सेना

1 comment:

Anonymous said...

really enjoied reading this delightful poem!! chichi chuhiya ko mera salaam.
Came here fom wiki..